देवी गुंडिचा कौन हैं? भगवान जगन्नाथ की मौसी बनने की रहस्यमयी गाथा और रथयात्रा का पौराणिक रहस्य

जानिए पुरी रथयात्रा का गहरा रहस्य! देवी गुंडिचा क्यों कहलाती हैं भगवान जगन्नाथ की मौसी? कैसे शुरू हुई मौसी के घर जाने की परंपरा? समाधि में लीन रानी, ब्रह्मलोक की यात्रा और चमत्कारिक प्रकट होते मंदिर की पूरी कहानी यहाँ पढ़ें।
रथयात्रा: भगवान का मौसी के घर जाने का पावन उत्सव
हर साल आषाढ़ माह में पुरी की **जगन्नाथ रथयात्रा** दुनिया भर में लाखों भक्तों को आकर्षित करती है। भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा विशाल रथों पर सवार होकर **श्री गुंडिचा मंदिर** जाते हैं, जिसे “**मौसी घर**” कहा जाता है। यह यात्रा महज एक रस्म नहीं, बल्कि **पौराणिक वचनबद्धता** है जो भगवान ने अपनी मौसी को दिया था। लेकिन कौन हैं ये देवी गुंडिचा? भगवान की मौसी कैसे बनीं? यह रहस्य एक अद्भुत कथा में छिपा है।
पौराणिक कथा: राजा इंद्रद्युम्न की भक्ति और रानी गुंडिचा का तप
1. **नीलमाधव की खोज और मंदिर निर्माण**
प्राचीन उत्कल (वर्तमान ओडिशा) के राजा इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के परम भक्त थे। स्वप्नदेश मिलने पर उन्होंने **नीलमाधव** (जगन्नाथ का पूर्व रूप) की खोज शुरू की। कड़ी तपस्या के बाद भगवान ने नीलगिरि पहाड़ी पर दर्शन दिए। राजा और रानी गुंडिचा ने वहाँ एक भव्य मंदिर बनवाया। पर एक समस्या थी: **प्राण-प्रतिष्ठा** के बिना मंदिर अधूरा था।
2. **देवर्षि नारद का कठिन निर्देश**
देवर्षि नारद के आगमन पर राजा ने प्राण-प्रतिष्ठा हेतु योग्य पुरोहित का सवाल किया। नारद ने बताया: “यह कार्य केवल **ब्रह्मा जी** कर सकते हैं।” पर चेतावनी दी: “ब्रह्मलोक जाने और लौटने में **धरती पर सदियाँ बीत जाएँगी**। तुम्हारा राज्य, परिवार सब काल के गाल में समा चुके होंगे।”
3. **रानी गुंडिचा का अद्वितीय संकल्प**
राजा ने निर्णय लिया: “मैं जाऊँगा!” तब रानी गुंडिचा ने घोषणा की: **”जब तक आप लौटेंगे, मैं समाधि में रहूँगी।”** उन्होंने प्राणायाम द्वारा शरीर को निलंबित कर दिया। सेवक विद्यापति और ललिता ने उनकी देखभाल का भार संभाला। राजा ने जाते समय पुरी में **100 कुएँ, जलाशय और धर्मशालाएँ** बनवाईं ताकि राज्य सुरक्षित रहे।

चमत्कारों की श्रृंखला: सदियाँ बाद लौटे राजा
1. **ब्रह्मलोक की यात्रा और समय का भ्रम**
राजा इंद्रद्युम्न नारद के साथ **ब्रह्मलोक** पहुँचे। ब्रह्मा जी ने प्राण-प्रतिष्ठा का आश्वासन दिया। पर लौटते ही पता चला: **धरती पर कई शताब्दियाँ बीत चुकी थीं!** पुरी पर अब **राजा गालु माधव** शासन कर रहे थे। मूल मंदिर **रेत के नीचे दब चुका था**।
2. **हनुमान जी का हस्तक्षेप और मंदिर का पुनर्जागरण**
जब नए राजा गालु माधव ने इंद्रद्युम्न पर अविश्वास किया, तब **हनुमान जी संत वेश में** प्रकट हुए। उन्होंने चुनौती दी: “यदि ये सच्चे हैं तो मंदिर का गर्भगृह खोजकर दिखाएँ।” इंद्रद्युम्न ने रेत में दबे गर्भगृह का द्वार ढूँढ़ लिया। उसी क्षण **नीलमाधव का दिव्य प्रकाश** फैल गया!
3. **रानी गुंडिचा की समाधि टूटना**
इधर, रानी गुंडिचा की समाधि टूटी। सामने खड़े युवा दंपति ने कहा: **”हम आपके वंशज हैं। सदियों से आपको ‘माई’ मानकर पूजते आए हैं!”** रानी को जब मंदिर मिलने का पता चला तो वहाँ पहुँचीं। राजा-रानी का मिलन हुआ। गालु माधव ने सबूत मिलने पर इंद्रद्युम्न के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
भगवान का प्राकट्य और “मौसी” का विशेष सम्मान
1. **ब्रह्मा जी द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा और वरदानों की घड़ी**
ब्रह्मा जी ने यज्ञ कर प्राण-प्रतिष्ठा की। तभी **जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा** प्रकट हुए! राजा इंद्रद्युम्न ने वरदान माँगे:
– मंदिर निर्माण करने वाले श्रमिकों के **वंशजों पर सदैव कृपा** बनी रहे।
– विश्ववसु (दिव्य शिल्पी), विद्यापति और ललिता के नाम सदा पूजा में लिए जाएँ।
– **रानी गुंडिचा** को विशेष सम्मान मिले, जिन्होंने मातृत्व सुख त्यागकर तपस्या की।
2. **भगवान जगन्नाथ का ऐतिहासिक घोषणा**
भगवान रानी की ओर मुड़े:
> **”तुमने माँ की तरह मेरी प्रतीक्षा की। आज से तुम मेरी मौसी गुंडिचा देवी हो! हर वर्ष मैं तुम्हारे धाम आऊँगा।”**
उन्होंने घोषित किया:
– रानी के तपस्थल पर **गुंडिचा मंदिर** बनेगा, जो **शक्तिपीठ** तुल्य होगा।
– यहीं से शुरू होगी **रथयात्रा** की परंपरा।
– हर राजा **छेरा पहरा** (स्वर्ण झाड़ू से मार्ग सफाई) करेगा।
गुंडिचा मंदिर: मौसी का पावन धाम
1. **स्थान और संरचना**
मुख्य जगन्नाथ मंदिर से **2.6 किमी** दूर स्थित यह मंदिर **वन के बीच** बना है। मान्यता है कि यहाँ कभी रानी गुंडिचा का **निजी उद्यान** था। मंदिर के मुख्य भाग:
– **जगमोहन**: सभा कक्ष
– **भोगमंडप**: भोग स्थल
– **रसोईघर**: जहाँ मौसी भगवान के लिए भोग तैयार करती हैं
2. **नौ दिवसीय विश्राम और विशेष रीतियाँ**
भगवान यहाँ **9 दिन** रुकते हैं। कुछ खास परंपराएँ:
– **मौसी भोजन**: भगवान यहाँ **गुंडिचा देवी द्वारा पकाया भोग** ग्रहण करते हैं।
– **हेरा पंचमी**: देवी लक्ष्मी यहाँ आकर भगवान से नाराज़गी जताती हैं।
– **बहुदा यात्रा**: वापसी के समय भगवान **मौसी से विदाई भेंट** लेते हैं।
3. **शक्तिपीठ का दर्जा**
इसे **गुंडिचा तीर्थ** कहा जाता है। मान्यता है कि यहाँ:
– सती की **नाभि** गिरी थी।
– **चमत्कारिक जल**: मंदिर परिसर का कुआँ रोगों को दूर करता है।
रथयात्रा का गूढ़ अर्थ: केवल यात्रा नहीं, वचन की पूर्ति
1. **भक्ति और परिवार बंधन का संदेश**
यह यात्रा सिखाती है कि **भक्ति से बड़ा कोई बंधन नहीं**। रानी गुंडिचा ने:
– राजसी ऐश्वर्य का त्याग किया।
– सदियों तक समाधि में रहीं।
– भगवान ने उन्हें **मौसी का ओहदा** देकर सम्मानित किया।
2. **जीवंत परंपराएँ: आज भी कायम**
– **दइतापति**: विद्यापति-ललिता के वंशज आज भी मुख्य पुजारी हैं।
– **रथ निर्माण**: शिल्पकारों के वही वंशज रथ बनाते हैं।
– **छेरा पहरा**: ओडिशा के राज्यपाल (पुरी के राजा के उत्तराधिकारी) आज भी स्वर्ण झाड़ू से मार्ग साफ़ करते हैं।
3. **आध्यात्मिक महत्व**
विद्वान मानते हैं:
– **जगन्नाथ पुरी = वैकुंठ धाम**
– **रथयात्रा = जीवात्मा का परमात्मा से मिलन**
– **गुंडिचा मंदिर = भक्त का हृदय**, जहाँ भगवान विश्राम करते हैं।
निष्कर्ष: भक्ति की अमर गाथा
देवी गुंडिचा की कथा **निष्काम भक्ति** की पराकाष्ठा है। उनका तप और राजा इंद्रद्युम्न की निष्ठा ने ही पुरी को **धरती का वैकुंठ** बनाया। आज भी रथयात्रा केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि भगवान के उस **वचन का जीवंत प्रमाण** है जो उन्होंने अपनी मौसी को दिया था। यही कारण है कि गुंडिचा मंदिर को “**मौसी घर**” कहकर पुकारा जाता है – जहाँ भगवान हर साल अपने **भक्त के प्रेम का ऋण** चुकाने आते हैं।
> *”जब तक पुरी में जगन्नाथ विराजमान हैं,
> तब तक गुंडिचा माई का आँगन सुना नहीं रहेगा।”*
> – पुरी की लोक कथा